(Last Updated On: April 12, 2021)
क्रंदन
गर्भ में पल रही, अजन्मी पुत्री माँ से कहे पुकार के। माँ पुत्री है अनमोल, जिसका कोई नही है मोल। माँ क्या इस बार भी पुत्र सुख की आस, छीन लेगा मेरा निःस्वास। माँ तुझे ज़रा भी नही आभास तु मुझे देगी कितना त्रास। माँ क्यों पुत्री का जन्म एक निरस्ता है, पुत्र होने पर पैसा बरसता है। माँ यही तेरी विवशता है, क्योंकि यही सामाजिक व्यवस्था है। माँ तुने भी तो किया है मेरी धड़कनो को एहसास, क्या तु नही चाहती मुझे अपने ह्रिद्य के पास। फिर क्यों नही कर रही तु इस कुरीति का विरोध, जो कर रहा है मेरे आने के मार्ग को अवरोध। माँ मुझे जन्म लेकर जग को दिखाना है, पुत्री पुत्र से बढ़कर है यही उनको बताना है। पुत्र जैसा कर्तव्य मुझे भी निभाना है, पुत्र और पुत्री के इसी भेद को मिटाना है।
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